हमारे पूर्वजोँ ने हिन्दुस्तानी संस्कृति में सर्व -धर्म समभाव की समरसता का जो सन्देश दिया है ...उसका जीता जागता उदहारण है आज आज मनाया जाने वाला त्यौहार -बाइसवी..!!!..आज से सभी तीज-त्योहारों के द्वार वैसे ही खुल जांयेंगे जैसे देवउठनी ग्यारस से सनातनियो में खुलते है ..! ...अकेला यही त्यौहार क्यों सबेरात के मोको पर वैसे ही पुरखो को दावत दी जाती है जेसे श्राद्ध में पितरो को तर्पण दिया जाता है ....!!!
त्यौहार ही क्यों ...आप कश्मीर चले जाईये ...धर उपनाम को दर से पुकारा जाता है ...मालिक ..मलिक हो गए ....सेठ ..शेख..बन गए ...चलिए पाकिस्तान भी चलते है ...विदेश सचिव मोहतरमा सेठी ही उपनाम लिखती है ...विदेश मंत्री जी भारत आकर अपने जाट पुरखो याद करना नहीं भूली ....???...आखिर अपने पुरखो को कौन भूल सकता है ...???..भूलना भी नहीं चाहिए ....देस -काल की तत्कालीन परस्थितियों के चलते हमारे अपनों ने पूजन - पद्धति भले ही बदल ली हो लेकिन रीति-नीति में कोई खास बदलाव आज भी नहीं आया और आएगा भी नहीं ..आखिर खून तो इसी माटी का है न....!!!...
हिंदुस्तान की इस माटी की इसी जीवन पद्धति के चलते ही हिंदू धर्म नहीं बल्कि जीवन पद्धति है ....दरसल हिंदू धर्म नहीं ...हिंदुस्तानियों की जीवन शेली है ....!!!...इस मर्म को सबको समझते हुए ..आपस में बातचीत जरुर करना चाहिए ...मेलजोल -समरसता को सिर्फ किसी त्यौहार या चुनिन्दा व्यक्तियों के भरोसे न छोड़ते हुए .. जनता -जनार्दन को आगे आना चाहिए ..और जनता आगे आ भी रही है...यही सच्ची देशभक्ति भी है ...और इंसानियत का तकाजा भी ....!!!
त्यौहार ही क्यों ...आप कश्मीर चले जाईये ...धर उपनाम को दर से पुकारा जाता है ...मालिक ..मलिक हो गए ....सेठ ..शेख..बन गए ...चलिए पाकिस्तान भी चलते है ...विदेश सचिव मोहतरमा सेठी ही उपनाम लिखती है ...विदेश मंत्री जी भारत आकर अपने जाट पुरखो याद करना नहीं भूली ....???...आखिर अपने पुरखो को कौन भूल सकता है ...???..भूलना भी नहीं चाहिए ....देस -काल की तत्कालीन परस्थितियों के चलते हमारे अपनों ने पूजन - पद्धति भले ही बदल ली हो लेकिन रीति-नीति में कोई खास बदलाव आज भी नहीं आया और आएगा भी नहीं ..आखिर खून तो इसी माटी का है न....!!!...
हिंदुस्तान की इस माटी की इसी जीवन पद्धति के चलते ही हिंदू धर्म नहीं बल्कि जीवन पद्धति है ....दरसल हिंदू धर्म नहीं ...हिंदुस्तानियों की जीवन शेली है ....!!!...इस मर्म को सबको समझते हुए ..आपस में बातचीत जरुर करना चाहिए ...मेलजोल -समरसता को सिर्फ किसी त्यौहार या चुनिन्दा व्यक्तियों के भरोसे न छोड़ते हुए .. जनता -जनार्दन को आगे आना चाहिए ..और जनता आगे आ भी रही है...यही सच्ची देशभक्ति भी है ...और इंसानियत का तकाजा भी ....!!!
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