आज से कोई तेइस साल पहले फरवरी १९८९ में साप्ताहिक हिन्दुस्तान की म.प्र.चुनाव पर मेरी कवर स्टोरी की प्रति लेकर मैं नई दुनिया इंदौर में उपसम्पादक भर्ती का साक्षात्कार देने कक्ष में इठलाते हुए दाखिल हुआ ....मै लिखित परीक्षा पर आदरणीय श्री अभय छजलानी जी से चर्चा कर ही रहा था कि श्रद्धेय श्री राहुल बारपुते जी का गँभीर प्रश्न आया -भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में दो आजन्म कारावास की कैद किस महापुरुष ने खुशी-खुशी सही थी ..????.....चुनावी राजनीति पर कवर स्टोरी छपवा कर मेरी ज्ञान बघारती बोलती बंद देख राहुल जी बोले -समकालीन जानकारी का धरातल वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रतासंग्रामी की ऐसी आहुतियो के ज्ञान के बिना अधूरा है ..!!! ...वीर सावरकर की इसी वीरता के कारन उन्हें श्रद्धा के साथ वीर उपाधि से याद किया जाता है ...!!... उनकी वीरता के प्रति जानकारी का अधुरापन हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के अमर व्यक्तित्वो के प्रति विलायती या लाल किताबें पढ़े वर्ग के उस षण्यंत्र का परिणाम है जिसके तहत राष्ट्रीयता की भावना को अरसे से रोकने का असफल दुष्चक्र चलाया जा रहा है ...जिससे भारत माता की जय की जगह लाल सलाम या डालर मेरी जान के जयकारे लगे ...!!!
ये सारे जयकारे ..वीर सावरकर की वीर गाथाओं के सामने टिक नहीं सकते ...इसलिए हमारा परम कर्त्तव्य है कि हम अपनी पीढ़ी को उनकी वीरताओ से भी अवगत कराये ...यदि हम फिर भी.. ट्विंकल -ट्विंकल लिटिल स्टार ...में ही डूबे रहे तो आगे चुल्लू भर पानी भी नसीब नहीं होगा ...????
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