Monday, May 28, 2012

वीर सावरकर

























































आज से कोई तेइस साल पहले फरवरी १९८९ में साप्ताहिक हिन्दुस्तान की म.प्र.चुनाव पर मेरी कवर स्टोरी की प्रति लेकर मैं  नई दुनिया इंदौर में उपसम्पादक भर्ती का साक्षात्कार देने कक्ष में इठलाते हुए दाखिल हुआ ....मै लिखित परीक्षा पर आदरणीय श्री अभय छजलानी जी से चर्चा कर ही रहा  था कि श्रद्धेय श्री राहुल बारपुते जी का गँभीर प्रश्न आया -भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में दो आजन्म कारावास की कैद किस महापुरुष ने खुशी-खुशी सही  थी ..????.....चुनावी राजनीति पर कवर स्टोरी छपवा कर  मेरी ज्ञान बघारती बोलती बंद देख राहुल जी बोले -समकालीन जानकारी का धरातल  वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रतासंग्रामी की ऐसी आहुतियो के ज्ञान के बिना  अधूरा है ..!!! ...वीर सावरकर की इसी वीरता के कारन उन्हें श्रद्धा के साथ वीर उपाधि से याद किया जाता है ...!!... उनकी वीरता के प्रति जानकारी का अधुरापन हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के अमर व्यक्तित्वो के प्रति विलायती  या लाल किताबें पढ़े वर्ग के उस  षण्यंत्र  का परिणाम है जिसके तहत राष्ट्रीयता की भावना को अरसे से रोकने का असफल दुष्चक्र चलाया  जा रहा है ...जिससे भारत माता की जय की जगह लाल सलाम या डालर मेरी जान के जयकारे लगे ...!!!
                                           ये सारे जयकारे ..वीर सावरकर की  वीर गाथाओं के सामने टिक नहीं सकते ...इसलिए हमारा परम कर्त्तव्य है कि हम अपनी पीढ़ी को उनकी वीरताओ से भी अवगत कराये ...यदि हम फिर भी.. ट्विंकल -ट्विंकल लिटिल स्टार ...में ही डूबे रहे तो आगे चुल्लू भर पानी भी नसीब नहीं होगा ...????



                  


















Sunday, May 27, 2012

ऋण कृत्वा तेलम पिवेत

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                     
 मित्रो, बड़ी पुरानी कहावत है.... तेल देखो -तेल की धार देखो  ...समय की धारा में  कितना भी तेल क्यों न बह गया हो ..पर कहावत बरकरार है ..इसलिए तो कहावत है ..!!!...प्राचीनतम काल में तेल भरी नाव में मुर्दों  को सुरक्षित रखा जाता था ..अब तेल के खेल में जिन्दा ...मुर्दे हुए जा रहे है ...खबरिया चैनल ..मारडाला  चैनल  बन गए है ...????...क्या आपको याद आ रहा है किसी चैनल ने मारडाला से इतर इस  मझदार में  वैकल्पिक राह तलाशने की बहस या सौर उर्जा -साइकिल सवारी जैसे वैकल्पिक उपायों के   चुनाव के एस.एम्.एस.न्योते  हो ....???
                                                            दरसल  तेल मालिश के शोकिनों को न्योतने की  होड में हम ये क्यों भूल गए कि तेल हमारी दुखती रग है और आगे भी रहेगी ..क्योंकि हम.. ऋण कृत्वा तेलम पिवेत की कालिदासी  धुन में ही मस्त है ...????...बढ़ी कीमतों के बहाने ही सही पर वैकल्पिक उपायों पर  चिंता जरुरी है ...बहसे इन उपायों पर केंद्रित होनी चाहिए..न की विलापो पर ....!!!! तेल की चिंता सिर्फ मंहगाई के कारन नहीं वरन राष्ट्रीय स्वाभिमान के कारन ज्यादा जरुरी है ...यह तेल ही है जो हमें अरब देशों के संदर्भ में  हमे  हिचकियाँ ला देता है ...!!!    आज तेल पर अरब देशों पर हमारी  निर्भरता के नुकसानों के प्रति जनता -जनार्दन को जगाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए न की मार डाला का रुदन  वरना इतिहास हमें माफ नहीं करेगा ....!!!!..जन-मन को चुनावी वैतरणी का तिनका न बनाये ..     अरब  वेसाखियो  को तजने का  राष्ट्रीय तराना बनाए ....   यही सच्ची  टी.आर.पी.  होगी ..!!!