Tuesday, June 17, 2014

अपने-अपने दिवस...

मित्रो अपने यहाँ पूरे वर्ष भर उत्सव मना ने की सनातनी परम्परा रही है और साल में जीवन -मरण मात्र को स्मरण कर इकठ्ठा होने वाले मेकाले पुत्रो ने  हमारी इस उत्सवधर्मिता की खूब हँसी उड़ाई ....हमें ना-ना प्रकार के विभुष्णो से अलंकृत किया गया   !!!!....वे  साल भर में जब -तब अमुक डे-फलं। डे मना डालते और शेष दिनों में खालिश व्यक्तिवादिता के नशे  में" डे आयोजन" के संज्ञा-सर्वनाम के विशेषण को लतियाते रहते....?????
     लतभनजन की धुन में उन्हें हमारी दिन- प्रतिदिन की गम्मत से भारी चिड होती थी और अपनी  इस झेप को मिटाने के लिए उन्होंने कुछ तथाकथित प्रेरणादायी दिवसों को इजाद कर डाला......वेलेंटाआईं न डे ,मदर डे .....आदि -आदि ....गोया कि  एक दिन दुकान  लगाओ ...बेचो ...खाओ और अगले दिन दूसरा शिकार देखो .....???...इन गोरो ने दुनिया भर की प्राकर्तिक संपदा  को जी भर लूटा और तथाकथित  विकसित कंट्री की स्यंभू डिग्री तानकर शेष दुनिया को विकाशशील बनाए रखने के ब्रांहणवाद के चलते पर्यावरण संरक्षण की दुहाई शुरू कर दी ....!!!!...दुहाई भी ऐसी कि ...हज करती बिल्ली भी शरमा जाये ....सो एक पर्यावरण दिवस को ईजाद  करके ...दिन भर.. ग्रीन हाउस का ठीकरा गरीबो पर फोड़कर साल भर की एनओसी अपने पाकिट मे रखने का वन डे टूर्नामेंट चालू आहे ....!!!...मित्रो ऐसी ही दुर्गति भाई लोग ....वृद्धाश्रम खोलकर फादर की करते आ रहे थे ...सो  ...लगे हाथ फादर डे का तम्बू भी उसी 
पर्यावरण दिवस को तान दिया ...!!!...प्रकति रूपी माँ और फादर का एसा विकट मट्टीप्लीती मिला जुला  संस्करन ...इनही मायावियों की देन है !!   
        इन मायावियों के चमत्कार को अपने यहा भी  सुधिजन खूब नमस्कार करने मे जूटे रहे ....पर सुधिजन इस  घनचक्कर मे ये भूल गए कि...हमारी तिरकाल संध्या मे तो देव स्वरूप मात -पिता का दिन -प्रति दिन का सुमरण पूर्वजो के काल से होता आ रहा है ....!!!...हम अपनी  चाल भूलकर ...एक ही दिन मे पर्यावरण रूपी   माँ और फादर यानि पिता को स्मरण करने के  स्वांग मे 364 दिन ही  नहीं   बल्कि पूरी सनातनी गौरव गाथा का बंटाढार करने पर क्यो उत्तारू है .....????