Wednesday, December 7, 2011

...गर मोबाइल न होता ...

अगर तुम न होते तो ऐसा होता ...वैसा होता ...दुनिया की सारी फंताशिया इसी के इर्दगिर्द मडराती है !!!आजकल बेचारा मानुष इतना  मोबाईल हो गया है की उसे सुस्ताने की दम नहीं है सो फंतासियां तो हवा हो गई है ...और बस वो तो आहें भर रहा है ....गर मोबाइल न होता ...???...अब्बल तो बॉस ही न ढूड पाता...प्रिये तंग भी न करती ...बच्चे पुकार ही नहीं लगा पाते...उधारी वाले सिर ही पीटते रहते ...गाड़ी पर सवार प्रेमी कनबतियां कर रोड जाम न करते ...वाहन दुर्घटनाएँ न बढती ...निद्रा प्रेमियों की तन्द्रा-भंजित न होती ...बगेरह-बगेरह ....!!!
                                            पर दोस्तों  न्यूटन  की क्रिया -प्रतिक्रिया से भला कौन बचा है ...सो ..मोबाइल न होता तो हम और आप कैसे बतिया पाते ...आपातकालीन सुचनाये कैसे साझा कर पाते ..अफसर बाबुओं पर रोब कैसे गांठ पाते ..बीबी पतियों को मजनू बनने से कैसे रोक पाती...लैला कॉल डिटेल कैसे देखती ...मिस्सड कॉल को कैसे मिस  करते ...पुलिस बिना कॉल डिटेल के कितना परेशां होती ...तिहाड़ की शोभा कैसे बढती ...जी शब्द   महिमामंडित कैसे होता...????  हरिअनंत हरि कथा अनंता ...मुंडे-मुंडे मतर्भिन्ना ...स्याद्वाद के दर्शन मोबाइल कथा में भी व्यक्त हो रहे है  .... मोबाईल तो ठीक..... गर दुनिया न होती  ....???

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