Wednesday, October 5, 2011

अब्सेंट-अब्सेंट खेले

नमस्ते-नमस्ते,...नमस्ते जी ....आप सोच रहे होंगे ..आज बार-बार ये तकलुफ्फ़ क्यों ...???  जरा याद करिये घर की काम वाली बहिन जी को ....थोडा जोर लगाईये ...अपने ऑफिस वाले बड़े बाबू की स्टायल का पुण्य स्मरण करे ...!!!! नहीं समझे ..तो फिर अपने लडकपन...के मास्टर साब को चिढाने की अदा  को याद करे ....|... ज्ञानियों.....बिन मंजूरी अब्सेंट की झेप मिटाने की ये अचूक दवा इस स्टायल में व्याप्त है ...!!!!  वैसे तो ये  दण्डनीय   अपराध है ...पर अगर दंड से मर्ज ठीक होता ..तो ..भईया क्या नए -नए बहाने  इजाद होते ...क्या दफ्तर-दफ्तर - हम भटकते ???
                                                 आप शायद ... गलत दिशा में जा रहे है ...ये कोई अकेला  सरकारी रोग नहीं है .....!!!  वर्ना  भला आदमी ..पूरे कुनबे की बैठक से अब्सेंट रहकर गुरु का गुड गोबर क्यों करता ........ मेडम भी बच्चों को लड़ने के लिए  छोडकर क्यों छु-मंतर हो जाती .... भाई लोग इन्गिलिस्तान में रातो-रात बीमारी के नाम पर  किरकिटिया दल को दल-दल में  कैसे छोड़ते...???...सुधिआत्माओ ...सब अपनी -अपनी  सुबिधाओ का  खेल है और ..इसी खेल के चलते मैं कल दुर्गा-अष्टमी को अब्सेंट  यानि गैरहाजिर .रहकर ..आज  जीहाजिर की टेर लगा रहा हूँ ...!!!इस  बंदे की हाजिरी लगा भी देंगे पर इस खेल का क्या करेंगे ....????

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