Thursday, September 29, 2011

नोट-नोट

करीब  इमरजेंसीके दोर की बात है ... मेंछतरपुर जिले की गुल्गंज प्राथिमिक शाला में ऊधम करता था !इसी धमाचौकड़ी में बस्ते के साथ घर जाने की बजाय ...मित्र अजय अगरवाल के यहाँ दुबक जाया करता था |पूज्य पिता श्री  जब डंडे के साथ प्रकट होते तो में नोट-नोट खेल में मशगुल मिलता ..!...ये दिनचर्या का हिस्साबन चुका था ...पापा आते कान पकड़कर घसीटते ...पर मै पक्का खिलाडी ..सो व्यापार नाम के खेल में जुटा रहता |बीते कई सालो से नोट-नोट के खेल की जगह बच्चे  लूटपाट के विडियोगेम में ही गेम कर रहे है ....|..पर  भला हो हमारे बुजुर्गो का जिन्होंने नोट-नोट की प्राचीनता को फि  र मुखर किया है !!!
                                  इन बुजुर्गो ने इस खेल में असल नोट के इस्तेमाल से व्यापार को  २०-२० जैसा रोमांचकारीबना दिया है !इस उतार-चडाव में रोंटियाई की पूरी गुंजाईश है ...में  जब हारकर रोकर घर मम्मी के चरणों में  पहुचता तो कहता ...माम ये मेरा नोट नहीं है ...और वत्सला मुझे आँचल में लेकर चीटिंग करने वालो को प्यारकी झप्पी देती ..तो में उनकी खडाऊ लेकर जैकारे करते फूला न समाता था ....!!!...किरकेट  हो तो पिच का रोना ,आतंक हो तो पाक का रोना ,चुनाव हो तो धन-बल का रोना ,रोजगार हो तो रिश्वत का रोना .........और फसने पर अफसरों का रोना .. रोंटियाई के ताजे अवतरण है !!!अब मम्मी बिचारी सीधी -सादी सो टंटे  के नोट को कूडेदान के हवाले कर सबको दुलारने लगती है ....!!!  नवरात्री में चारो ओर          समवेत हुंकार है... जय माता दी ..आप जय मामकहने के लिए फ्री है ..!!!जय हो !!!

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